मौत का तांडव देख लोग हुए मायूस
ज़िंदगी के दिन चार, थे कभी, अब नहीं मालूम
कुछ को दिखती सत्ता, नहीं दिखती मौत की आंधी
भूल गए सत्ता के मद में देश की जनता, बस है इनकी चांदी।

गिरते हालात में क्या तुम किसी का दिल जीत पाओगे?
जब समय है तुम्हारी कर्तव्यनिष्ठा और समर्पण का
तुम चुनाव प्रचार करने रोते बिलखते मौत में डूबे आंगनों में मिलने जाते हो
वीरान आंखों में देख कर तुम उनसे कैसे नज़र मिला पाते हो?

जिस देश के सरमाएदार हों खामोश और जूझ रही हो जनता
असहिष्णुता की पराकाष्ठा बन कर क्या सत्ता में तुम आओगे?
दंभ तुम्हारा होगा चूर, वो दिन भी दूर नहीं
जब तुम लोगों से भागते, नज़र चुराते नज़र आओगे।।