सतयुग से कलयुग तक, समय बदला, युग बदले
बदलता गया इंसान।
ना मालूम था ज़िंदगी होगी सस्ती, महंगा होगा समान।
युगों युगों से चलती अच्छाई, इंसान बना हैवान।
ज़मीर बेच अपना सब, बन गए शैतान।
इंसानों की शैतानियत देख इंसानियत भी शर्माई
मां बहनों को ना छोड़ा था अब तक, अब सारे संसार की बारी आई।
हुकूमत की चाहत में डूब, भूल गया इंसान
लाशों पर नहीं चलती हुकूमत, ये कौन नया हुक्मरान।
मति भ्रष्ट होती है जब, काल दिखाए रूप
हुकूमत की अंधी गलियों में, सिर्फ आंधी तेज धूप।
क्या पाएगा ए इंसान जब हाथ होंगे खाली
ना होगा कोई नाता रिश्ता ना कटोरी ना थाली।
क्या बजाओगे उस पल जब होगा नंगा नाच
लाशों के अंबार लगेंगे, मौत करेगी नाच।
तब क्या होगा जब तुम खुद होगे शिकार
कभी सोचा इस बारे में? बंद करो मौतों का व्यापार।।