वो जो फिरता था हम पे इतराए
आज मिलने से भी है कतराए
रास्ता एक था तो आसाँ था
एक तिराहा मिला कि चकराए
क्या जगह है पता नहीं चलता
कोई परचम-सा लाके फहराए
यूँ अंधेरे बसे थे आँखों में
ख़्वाब रोशन हुए तो घबराए
दिल की परवाज़ का इरादा है
कि सितारों से जा के टकराए
प्यार नज़दीकियों से प्यार रहे
दूरियाँ हों तो और गहराए
दूरियाँ
C K Rawat
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 07/14/2019
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