आप पहले ही क्यूँ नहीं आए
आपका इन्तज़ार था कब से
आपको माँग चुके थे रब से
बेक़रारी सी ज़िंदगी में थी
एक कमी जैसे हर ख़ुशी में थी
दिल की कुछ ख़्वाहिशें अधूरी थीं
आपकी शिरकतें ज़रूरी थीं
रौनक़ें खोज रही थीं महफ़िल
रास्ते ढूँढ रहे थे मंज़िल
आप ही आप हर तरफ़ छाए
आप आए और इस तरह आए
आप ही हैं जो आप जैसे हैं
जैसा चाहा था आप वैसे हैं
हर क़दम साथ-साथ चलना है
थाम के यूँ ही हाथ चलना है
ज़िंदगी एक हसीन सपना है
कुछ गिला है तो सिर्फ़ इतना है
आप पहले ही क्यूँ नहीं आए
आप पहले ही क्यूँ नहीं आए
C K Rawat
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 07/16/2019
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