इक शायर के अल्फाजों की दास्तां हो जाऊं
बात वो तेरी करे और शब्दों में कहीं मैं ढल आऊं
के सुनना चाहें सब उसे, पर हर दफा जरिया मैं ही बन पाऊं
दीवानगी की 'उफ' में शामिल मरहम भर मैं आऊं
दिल का दर्द आंखों की 'आह' में तब्दील हो, लोगों की गुफ्तगू का नशा बन जाऊं।
' कि '
इक शायर की ग़ज़ल पढ़ आऊं, और उसका अंत कह लाऊं।
वो शायर तु हो जा, तेरी बेवफ़ा मोहब्बत मैं हो जाऊं।