इक शायर के अल्फाजों की दास्तां हो जाऊं
बात वो तेरी करे और शब्दों में कहीं मैं ढल आऊं
के सुनना चाहें सब उसे, पर हर दफा जरिया मैं ही बन पाऊं
दीवानगी की 'उफ' में शामिल मरहम भर मैं आऊं
दिल का दर्द आंखों की 'आह' में तब्दील हो, लोगों की गुफ्तगू का नशा बन जाऊं।
' कि '
इक शायर की ग़ज़ल पढ़ आऊं, और उसका अंत कह लाऊं।
वो शायर तु हो जा, तेरी बेवफ़ा मोहब्बत मैं हो जाऊं।
"शायर की महफ़िल में नशा बन जाऊं।"
Akansha Rastogi
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 11/02/2019
(1)
Poem topics: , Print This Poem , Rhyme Scheme
Previous Poem
Next Poem
Write your comment about "शायर की महफ़िल में नशा बन जाऊं।" poem by Akansha Rastogi
Best Poems of Akansha Rastogi