पक्ष विपक्ष की लड़ाई में देश हित कहीं खो गया
देखो मेरे देश का वासी कैसे अंधा हो गया।
अपनी जीत के दंभ में खत्म हो रही सांसे
देश की गरिमा जूझ रही, उठ रही लाशें।
हस्पतालों में प्राणवायु से मेरे देशवासी तड़प तड़प कर मर रहे हैं
और कुछ लोग उस पर भी अपनी सियासत की रोटी सेंक रहे हैं।
बन कर अंधा-बहरा मेरे देश का नायक सो रहा है
देखो मेरे देश का वासी अपनी सांसों की डोर के लिए तरस रहा है।
मैंने पहले ही आगाह किया था, ये दिन जरूर आएगा
जब मेरे देश का नायक सोता रहेगा और सांसों पर टैक्स लगाएगा।
मेरे देश की मूलभूत प्राणवायु खतम हो गई है
मेरे देश के समस्त देशवासियों को सियासत की आदत जो पड़ गई है।
क्या होगा मेरे प्यारे हिंदुस्तान का, क्या मुझे कोई बतलाएगा?
कौन बनेगा भगत सिंह, सुखदेव, राजगुरु और मेरे देश को आज की सियासत की जंजीरों से बचाएगा।
देश है कोई जागीर नहीं जो अपना हक जतलाते हो
कुछ तो शर्म कर लो अब सब तुम; बंद करो सियासत की चालों को।
जहर घोल कर फिज़ा में देश की, क्या जाएगा सरमाएदारों क?
क्या मेरा देश फिर से सोने की चिड़िया बन खुली सांस ले पाएगा? खुली सांस ले पाएगा? खुली सांस ले पाएगा?