मैं अक्स थी
वो आइना थी मेरा
खुद को मुझमें ढूंढ रही थी
अपने अधूरे सपने पूरे कर रही थी
वो "माँ" थी
शायद उसे औरत होने की मर्यादा रोक गयी थी
जो अपने ख्वाबों को
मेरे जरीये पूरा कर रही थी
अपनी परछाई मुझमें देख रही थी
वो "माँ" थी
जो मुझे आसमां तक पहुचते देख रही थी
मैं अक्स थी
वो आइना थी मेरा
वो मेरी "माँ" थी
जो खुद को मुझमें ढूंढ रही थी।
वो आइना थी मेरा।
Sonam Sharma
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 09/17/2019
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CK Rawat: Lovely emotions, nice expressions.
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