अब तो हर मंज़र वीरान नज़र आए ,
न कोई निशाँ बहार का है।
हुई मुद्दत ख़्बावों को आइना देखे,
अब तो हर लम्हा इंतज़ार का है।
मुद्दत बीत गयी लम्हा ए इंतज़ार में,
फ़क़त जुस्तजु ही रह गयी ख़्बावो दीदार में।
तेरी तक़दीर में मेरा नाम कहीं भी न था,
तेरी तस्वीर तो अब भी है दिल ए बेक़रार में।
इस बेक़रार दिल को केसे करार आए,
हर लम्हा है उदास कैसे बहार आए।
ए वुत ए खुदा ये बता मेरा नसीब क्या है,
अजाब ए हिज्र के मौसम में कुछ अश्फ़ाक आए।
लम्हा ए इंतजार
Sanjay Gupta
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 07/08/2019
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