अब तो हर मंज़र वीरान नज़र आए ,
न कोई निशाँ बहार का है।
हुई मुद्दत ख़्बावों को आइना देखे,
अब तो हर लम्हा इंतज़ार का है।

मुद्दत बीत गयी लम्हा ए इंतज़ार में,
फ़क़त जुस्तजु ही रह गयी ख़्बावो दीदार में।
तेरी तक़दीर में मेरा नाम कहीं भी न था,
तेरी तस्वीर तो अब भी है दिल ए बेक़रार में।

इस बेक़रार दिल को केसे करार आए,
हर लम्हा है उदास कैसे बहार आए।
ए वुत ए खुदा ये बता मेरा नसीब क्या है,
अजाब ए हिज्र के मौसम में कुछ अश्फ़ाक आए।