मिलो तो हाल ए दिल तुझको वताऊं अपना मैं,
यह जुस्तजु भी ख्बावों  में सिमट गयी है।
ज़िंदगी ऐसे पढ़ाती है पाठ, हैरान हूँ ,
कि ख़्बावों की जुस्तजु भी मिट  गयी है।
मिलूँ , कहूँ कि हक़ीक़त में दास्ताँ क्या थी,
दिलों के दर्द ख़ुशी साँझा करूँ तुझसे मैं।
तुझे सुनाऊँ अावाज दर्द ए दिल की भी,
यह आरज़ू भी अश्क़ों में बँट गयी है।