मिलो तो हाल ए दिल तुझको वताऊं अपना मैं,
यह जुस्तजु भी ख्बावों में सिमट गयी है।
ज़िंदगी ऐसे पढ़ाती है पाठ, हैरान हूँ ,
कि ख़्बावों की जुस्तजु भी मिट गयी है।
मिलूँ , कहूँ कि हक़ीक़त में दास्ताँ क्या थी,
दिलों के दर्द ख़ुशी साँझा करूँ तुझसे मैं।
तुझे सुनाऊँ अावाज दर्द ए दिल की भी,
यह आरज़ू भी अश्क़ों में बँट गयी है।
हाल ए दिल
Sanjay Gupta
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 06/12/2023
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