अफ़साना ए मोहब्बत को कुछ एसे बयां कर दूँ ,
या तुझ को ख़ुदा कर दूँ या खुद को फ़ना कर दूँ।
दिल तिफ्ल तो नहीं जो रंज ओ ग़म से दूर हो,
चाहत है ख़ाक होकर कर तेरे हाथों की हिना कर दूँ।
मुद्दतें हुई है ख़्वाहिशों को अाईना देखे,
दफ़्न कर के दिल ए जज़्बात खुद को तन्हा कर दूँ।
ए खुदा अब तो पेमाना ए सब़र भी टूटने को है
तमन्ना है कि हदें तोड़ने की इंतहा कर दूँ।