यह कोरोना नहीं, बर्फ का पहाड़ है।
कल का सूरज के उगते ही, इसने पिघल जाना है।
सब्र रख मेरे दोस्त यह बुरा वक्त है,
इसने निकल जाना है।
यह मत सोचो घर बैठे तुम बेकार हो।
कुछ ऐसा करना है, जिससे निखर जाना है।
सब्र रख मेरे दोस्त यह बुरा वक्त है,
इसने निकल जाना है।
कल का सूरज फिर उगेगा।
फिर सबने अपने काम पर, तिलक (माथे पर टीका) कर जाना है।
सब्र रख मेरे दोस्त यह बुरा वक्त है,
इसने निकल जाना है।
सब्र रख मेरे दोस्त यह बुरा वक्त है, इसने निकल जाना है
Rishabh Chawla
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 06/22/2020
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Gopal Krishnan: Very positive