इब्तदा में दिल ज़रा सकुचाएगा
बाद में सब फ़लसफ़ा समझाएगा

होश पे क़ाबू नहीं रह पाएगा
ज़िंदगी में कोई यूँ आ जाएगा

धूप भी छाया घनी हो जाएगी
कोई अपनी ज़ुल्फ़ जब बिखराएगा

सौंप देंगे जानोदिल सब कुछ उसे
फिर ख़ुदी पे हक़ कहाँ रह जाएगा

कब तलक जारी रहेंगी फ़ुरक़तें
क्या हमारा दिल न कुम्हला जाएगा

आसमाँ है कहकशाँ है और तुम
कौन इन ख़्वाबों से वापस आएगा