क्यों सच कहने पर दिल दुखता हैं?
क्यों झूठ कहने पर खुशी?
क्यों कहते है सच कड़वा होता,
क्यों झूठ जल्द ही सच बन जाता??
सच इतना मुश्किल क्यों है?
झूठ से लोग डरते क्यों नहीं??

क्या इस क्यों का कोई  जवाब है?
या इसका जवाब मांगना नापाक हैं!
झूठ से दिल क्यों जलता नहीं?
सच से क्यों कोई पिघलता नहीं?
बेटे - बहु के झगड़े में क्यों सच हमेशा बेटे हैं?
झूठ हमेशा क्यों बहु?
क्यों मर्द का घरेलू हिंसा से पीड़ित होना झूठ कहलाता?
क्यों लड़की का लगाया हर इल्ज़ाम हमेशा सच हो जाता?
क्यों सच की हमेशा सीमा होती?
और झूठ हमेशा बढ़ता जाता!!
क्यों सच हमेशा मुश्किल होता?
और झूठ से कोई भय नहीं खाता!!

क्यों लड़की का रोना सच
और लड़के का आंसू झूठ हो जाता?
ना तुम्हें पता है सच, ना झूठ पता है मुझको!!
ये सच और झूठ की बातें आखिर लोगों को है कौन बतलाता??

सच क्या हैं कैसे मालूम??
जिसका प्रमाण है वो सच है क्या?
तो बाकी सब कुछ झूठ हैं मतलब!!
पर मेरे पास तो प्रमाण नहीं!

मेरे पास प्रमाण नहीं
की मां की ममता दिखा सकू
मेरे पास प्रमाण नहीं
बाबा की मेहनत बता सकू
हां मेरे पास प्रमाण नहीं
की ईश्वर का चेहरा दिखा सकू!!

'गर मेरे पास प्रमाण नहीं तो मतलब सब कुछ झूठ है!!
मां की ममता झूठ है?
बाबा की मेहनत झूठ है?
ईश्वर का होना झूठ हैं???
क्या मतलब सब कुछ झूठ है??

ये झूठ नहीं तो सच क्या है?
कैसे पता सच क्या है?
'गर प्रमाण नहीं तो झूठ हुआ!
और प्रमाण ही 'गर झूठा हो तो?
अब क्या कैसे बतलाओगे?
सच क्या हैं कैसे समझाओगे?

बात दरसल ऐसी है;
जो ना माना वो झूठ है
जो मान लिया वो सच हुआ
जो मन को भा जाता हैं,
वो झूठ भी सच हो जाता हैं।
जो दिल को दर्द क्या देता हैं,
वो सच कभी माना नहीं जाता हैं।।

क्योंकि सच की हमेशा सीमा होती,
झूठ हमेशा बढ़ता जाता।
इसलिए सच हमेशा मुश्किल होता,
और झूठ से कोई भय नहीं खाता।।