(मेरी मंजिल)
मंजिल मेरी अनोखी सुहाना सफर था ,
चेहरे पर मसूमियत और दिल में गमो का कहर था,
खुली खुली सी थी वादियां और खुला सा था आसमां,
नही मिली वो पगली और न पूरे हो पाए दिल के अरमान
भोली सी उसकी सूरत और चंचल उसकी निगाहे थी,
दीवाना बना दे किसी को भी ऐसी उसकी अदाएं थी।
चेहरे पर थी मासूमियत और दिल में थी मायूसी,
जो मिली नही है मुझको वो निकली जन्नत की परीसी।
चांदनी रात और सितारों की बहार में,
कितनी रात गुजारी मेने उसके इन्तजार में।
मगर दिल उसका कातिल निकला,
निगाहे उसकी फरेबी निकली,
और चेहरा बेवफा बेवफा बेवफा।।
Essence Of Love
Nilesh Keshriya
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 11/04/2019
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