रूखी अलकों को सजल कर
प्रीति की इस राह पर
दीप धरती बावरी सी
मैं खड़ी इस पार प्रिय--
रंग गई है रात नीलाभ इस आकाश को
सज गये हैं चाँद तारे अपनी अपनी राह पर
है मनाती रात उत्सव चाँदनी के पर्व में
प्रेममय आलोक में मैं खड़ी इस पार प्रिय--
निशब्दता के शब्द फूटे अर्थ देते भाव को
हो रही पुलकित दिशाएं पा लिया आकाश ज्यों
खिल रहे हैं नवकुसुम प्रीति की इस राह पर
मन बसंती सा लिए मैं खड़ी इस पार प्रिय--
रूखी अलकों को सजल कर
प्रीति की इस राह पर
दीप धरती बावरी सी
मैं खड़ी इस पार प्रिय