कौन कहता है हमने पी ज़्यादा
दोस्तो हम से तो गिरी ज़्यादा

कुछ तेरे ग़म का भी सरूर रहा
कुछ यह कमबख़्त भी चढ़ी ज़्यादा

तेरी नज़रों की जालसाज़ी में
हो गई हमसे मैकशी ज़्यादा

नामाबर उल्टे पाँव लौट आया
तेरे कूचे थी रोशनी ज़्यादा

इसलिए अक़्ल साथ छोड़ गई
हमने की दिल की पैरवी ज़्यादा

जितने ग़म हों निबाह कर लेंगे
दिल पे अच्छी नहीं ख़ुशी ज़्यादा