ज़ोर से सुलझा नहीं मसला कभी
जंग से कुछ हल नहीं निकला कभी

लड़खड़ाया जो अंधेरी राह में
वो यक़ीनन फिर नहीं संभला कभी

घर से जो बाहर न था निकला कभी
लौट के आया न वो पगला कभी

वक़्त ने सीनों पे पत्थर रख दिए
फिर किसी का दिल नहीं पिघला कभी

था कहाँ जाना कहाँ हम आ गए
रास्तों ने भेस यूँ बदला कभी