माँ, तेरे हाथ की सिली चादर
साथ मेरे बहुत चली चादर
मैंने ओढ़ी कभी बिछाई कभी
तेरी यादों की मख़मली चादर
प्यार के धागे हों पड़े जिसमें
उससे कोई नहीं भली चादर
तूने तर्तीब से ढका मुझको
जब मेरे जिस्म से ढली चादर
रंगोअंदाज़ वो मिले न कहीं
दूसरी वैसी न मिली चादर
तेरे हाथों की ख़ुशबू क़ायम है
बाद तेरे है अनधुली चादर
कुछ दिखाती है कुछ छुपाती है
हाय माज़ी की झिलमिली चादर
चादर
C K Rawat
(1)
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