बिना शिक्षकों के , कैसे होता इतिहास हमारा ?
कदम- कदम पर शिक्षक द्वारा लिखा अतीत ये सारा।।
शिष्य , शिक्षकों के निर्देशों पर जब पग पग चलते ।
फिर वे ही आगे चलकर भूगोल इतिहास बदलते ।।
यदि वशिष्ठ दशरथनंदन को परिपूर्ण नहीं बनाते ।
तो कैसे वध कर रावण का , रामचंद्र कहलाते ??
द्रोणाचार्य बिना क्या अर्जुन , भीम , युधिष्ठिर सारे ।
जिनके बल के आगे सौ-सौ कौरव भी थे हारे ।।
चंद्रगुप्त सामान्य व्यक्ति जैसे ही खाते , सोते ।
यदि उनके निर्माण हेतु , चाणक्य गुरु ना होते ।।
कैसी भी हो कठिन डगर , वो आसाँ कर देते हैं ।
शिक्षक ही नैराश्य शिष्य में , आशा भर देते हैं ।।
विद्यालय शिक्षा का मंदिर , गुरु उसके भगवान ।
हाथ जोड़कर , शीश झुकाकर , उनको करो प्रणाम।।

— सूर्य प्रकाश शर्मा