थमता ही नहीं मेरे दर्द का सिलसिला
कुछ यूं हैं मेरी ज़िन्दगी का मेला
उलझी उलझी है मेरे हाथों की रेखाएं
धुंधली सी हो गईं है मेरी ज़िन्दगी की उम्मीदें
बिखरी है मेरी खुशियां
बेरंग है मेरा दिन,अब हर रात मेरी काली है
शिकवा करूं किसी ओर से क्या
जब मेरी किस्मत ही मुझसे रूठी हैं
थमता ही नहीं दर्द का सिलसिला
कुछ यूं है ज़िन्दगी का मेला
भटक रही हूं दर्द की गलियों में
तन्हा है मेरा हर सफ़र
टूटे है मेरे सारे सपने,रूठे है मेरे अपने
थमता ही नहीं दर्द का सिलसिला
कैसे संभालू खुद को जब बिखर गई मेरी दुनिया।
poet.sonam