दर बदर की जिलते,,
ये क्या नसीब,
दुनिया में सिर्फ ठोकरें,
ये कैसी तकदीर,,
सुना है नेकी की राहें,,
कर्मो के फल अच्छे होते है,,,
यहां तो सबकुछ उल्टा हो गया,,,
नेकी में फासले बड़ गए,,,
बदी में हम सिमट गए,,
कैसे बदले जिंदगी के तौर तरीके,,
यहां बुरे कर्मो का बोलबाला हो गया,,,
खुदाई बहुत दूर निकल गई ,,
मेरा नसीब भी मुझसे रूठ गया,,
कोई लौटा सके तो ,
मेरे सारे ईमान लौटा दे,,
जामाने की दौड़ में ,,,
मेरा वजूद बाकी रह गया,,,
मेरे अपनों से बड़ गई दूरियां,,
बुरे ने मुझे झनझोड दिया,,
रूह कांप गई,,
सच्चाई जाग गई,,
पर संसो ने अब मेरा,,,
बेबस साथ छोड़ दिया
मेरा साथ छोड़ दिया,,
सतीश सेन बलाघाटी