।।बदरा।।

उफ़ ये नादानी तो नहीं,
बरखा रानी दीवानी तो नहीं,,
सुना है दीवानगी मुंह फेर लेती है,,
कहीं ये बारिश कोई सैतानी तो नहीं।
,,
चलो आयी हो ,,,
थोड़ा थम जाना,,
रुक रुक कर ही सही,,
बरखा बहार आना।

यूं तो चली जाती हो,,
बे-मौसम लौट आती हो,,
अब अायी हो तो थम जाना,,,
दीवानों सी इठलाती हो।
,,
देखो अब नादानी न चलेगी,
तनिक भी मनमानी न चलेगी,,
रुक जाओ थम जाओ,,
अब न इतराओ,


सारी बगिया खिल उठी,,,
ये मौसम छा जाने से,,,
घुमड़ घुमड़ बरखा रानी,
तेरे चले आने से,,,

देखो न पूरी धरा,,,,
मस्तानी लगने लगी,,,
सोंधी सोंधी सी धूल की खुशबू,,,
मनभावन लगने लगी।।

Sattu,,,सेन