जो तुम प्रेम से मुँह मोड़ सन्यास ले लिए, तो मैं प्रेम की आस किससे करूँगी?
जो तुम माला जपोगे, तो मैं नाम किसका दोहराऊँगी?
जो ख़ुद को क़समों में बाँध लिए, तो मैं रस्में किसके संग निभाऊँगी?
पर जो तुम रुक कर ये हाथ थाम लो, तो वचन है आजीवन सेवा तुम्हारी करूँगी।
यू जो साथी हीं रूठ सा जाए, तो मैं किसे मनाऊँगी?
यूँ जो ख़ामोश हो जाओ, तो अपने शब्दों को बयान कैसे करूँगी?
दुनिया कि रीत के आगे जो कमज़ोर पड़ जाओ, तो मैं ताक़त किसकी बनूँगी?
पर जो तुमने अपनी दुनिया में शामिल कर लिया तो अपनी दुनिया हीं सँवर जायेगी।
जो इन आँखो से ख़ूबसूरती को तलाशोगे, तो क्यूँ ना इन नैनों में बसे ख़ूबसूरत भाव को देखो?
कुछ ख़ता हो गायी हो, तो क्यूँ ना ऐतबार कर माफ़ कर दो?
जो जोगी बन तुम ईश्वर को ढूँढोगे, तो क्यूँ ना मुझसे प्रेम कर, तुम प्रेम में ईश्वर ढूँढो?
जो धागा बाँध माला पूरी करनी हो, तो क्यूँ ना उसमें मोती मुझे पीरोने दो?
जो जग में ख़ुशियाँ हीं बाँटनी हो, तो क्यूँ ना इस पल साथ मुस्कुरा लो?
मेरा संसार साक्षी है ऐ मनोहर, सुनो ये पुकार क्या कहती है,
वापस मुड़ कर देखो, मैं संग जीवन व्यतीत करना चाहती हूँ।
रोशनी कुमारी
आरज़ू
Roshni Kumari
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 05/19/2019
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