छोड़ दिया है दामन मेरा मेरे बेटे ने ।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने ।
जिसको राजा बेटा कहकर रोज बुलाते थे ।
जिसका सर सहलाकर पूरी रात सुलाते थे ।
क्यों इतना कड़वा बोल दिया है मेरे खोटे ने ।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने ।
गिरवी मेरे सपने मेरी इच्छाएं लाचार थी ।
उसकी दुनिया लगती मुझको मेरा ही आकार थी ।
कैसे धक्के मारे मुझको मेरे छोटे ने ।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने ।
क्या करुणा का सागर उसका सुख गया होगा ।
बूढ़े कन्धों से उसका मन ऊब गया होगा ।
गले लगा ले माँ बोली ना समझा बेटे ने ।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने ।
डर लगता है यहाँ पराये होंगे कैसे कैसे ।
घर ले चल तू मुझको मैं रह लुंगी जैसे तैसे ।
एक बार ना पीछे मुड़कर देखा बेटे ने ।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने ।
सुखी अंतड़ियों की खातिर अब दो रोटी भी भारी है ।
जिसने उसको जन्म दिया है वो ही बना अनारी है ।
छूना चाहा उसको झटका मेरे बेटे ने ।
दूर हो जाओ दोनों बोला मेरे बेटे ने ।
✍ धीरेन्द्र पांचाल
मेरे बेटे ने
Dhirendra Panchal
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 10/14/2020
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