जल रहे हो तुम, जल रहे हैं हम
क्यो किसी ने मुझे देखा नहीं
क्यो किसी ने मुझे रोका नहीं
जल रहे हैं आज पहाड़
जल रहे हैं अम्बर सारे
आग थी मैं, आग हूँ मैं
आग में है ये जग सारा
कर दुआ अपने रब से
भेज दे बूंदे कोइ
देखें थे सपने कहीं
देखा था तुम्हें कहीं
वक़्त से बुझा दो मुझे
देर ना हो जाए कहीं
बुझना चाहती हूँ मैं
बुझा दो मुझे अभी
फिर ना कहना मुझसे
जल रहे हो तुम, जल रहे हैं हम
आवाज़ दो कभी
Chandni Garg
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 06/01/2020
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