ज़िंदगी जिस दयार में गुज़री
एक तेरे इख़्तियार में गुज़री

दौर के कारोबार में न गई
न किसी रोज़गार में गुज़री

कुछ तमन्ना-ए-यार में बीती
कुछ ग़मे बेशुमार में गुज़री

तेरी दहलीज़ तक तो जा पहुंचे
राह गर्दो-ग़ुबार में गुज़री

उम्र जो चैन से गुज़रनी थी
वो तेरे इंतज़ार में गुज़री