शाम के मंज़र गुलाबी हो गए
यार मेरे सब शराबी हो गए

अल सुबह तक रात चमकीली रही
ग़म नशीले माहताबी हो गए

इम्तहाँ टकराए जब सच्चाई से
झूठे सब जुमले किताबी हो गए

खुल्ली राहों की हुईं पैमाइशें
मील के पत्थर हिसाबी हो गए

अपने-अपने दर्द के परचम लिये
सारे शायर इंक़लाबी हो गए