भारी क़दमों से देर रात को ज़ीना चढ़ना
आपके आने तलक जागता था घर अपना

वो दौड़ भाग कर जाड़ों की स्याह रातों में
बेहतरी के लिए कुनबे की मशक़्क़त करना

वो खिड़कियों से कभी आपका सदा देना
बेख़बर बच्चों का सुनना कभी नहीं सुनना

आपकी सीख बड़ी ज़िंदगी में काम आई
मुश्किलें आएंगी जाएंगी उनसे ना डरना

मेरे ज़हन के आइने में साफ़ अब भी है
आपने देखा था जो मेरी आँखों से सपना

रोक लेना थके अश्कों को अपनी पलकों पर
और फिर मुश्किलों से आपका कुछ कह सकना