मेरा उस चांद को देखने का मन करता ।
जिसकी छवि के सामने चांद भी फीका पड़ता।।
ये चांद आसमा में नहीं झरोखे मे दिखे ।
मुझे चांद देखे कई दिन गुजर गए ।।
मेरे दिल की हर धड़कन चांद को याद कर रही।
मेरी आंखे चांद के आनन की खूबसूरती को देखने को
तरस रही।।
ये सब्र मुझसे किया ना जा रहा ।
हे चांद अब तू ही बता वो चांद कब निकल रहा।।
क्योंकि धीरे धीरे ये बेसब्री दर्द में बदल रहा ।
ये दिल में उठने वाला मीठा दर्द शहा ना जा रहा।।
हे चांद तू अपनी छवि मुझ जैसे प्रेमी को कब दिखाएगा।
तेरा दीदार किए बिना रह ना पाऊंगा ।।
तेरे इस इंतजार का दर्द बहुत मीठा असहनीय प्रतीत हो रहा ।
जो मेरी काया में रग रग दौड़ रहा ।।
By-BHUPENDRA NISHAD
मेरा चांद कब निकलेगा
Bhupendra Nishad
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 03/24/2020
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Gopal krishnan: Aap bahut acchi Kavita likhate Ho
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