कुछ तारों को संग लाई है,
कुछ अंधेरे के संग शरमायी है,
यह रात जाने क्यों आई है......

कुछ अनजानी डगर में,
इस रात के पहर में,
जब जलता है टिमटिमाता दीपक ,
जब होता है शांत समा,
बस अंधेरे में होता है एक दीपक का साथ,
बस यूं ही आई है यह रात......

प्यारी प्यारी नींद बसी है इसमें,
चांद का एक पहरा सा है इसमें,
जब आई है कुछ गुनगुनाने की आवाज,
अकेलेपन में जब आई है किसी की याद,
और बस हो किसी का साथ,
बस कुछ यूं ही आई है यह रात......

जब हो किसी की जीत की तैयारी, 
जब महकने लगे रात की रानी,
कुछ इस पल की, कुछ उस पल की,
जब करें हम तुम बात,
कुछ लोगों का सोना,
कुछ लोगों का जागना,
बस आ ही जाती है यह रात......

जब हो हर रात के बाद कोई प्रभात,
समेट के कुछ बातों को,
जब हम और तुम करें कुछ बात,
और फिर कुछ बचे हुए........
सो जाओ कल करेंगे अब बात,

हाँ..............
इसलिए आती है यह रात......