माफ़ करना माँ, हम तुम्हे समझ न सके
तुम सदा हमारी परछाई बानी रही
यहाँ तक की पृत्वी भी कभी कभी विश्राम करती है
लेकिन तुम रोज़ सुबह से लेकर शाम तक हमारी सेवा करती रही
मगर क्या करे माँ हम तो वो भी न जान सके।

माफ़ करना माँ, हम तुम्हे समझ न सके
तुम्हारे प्यार को तुम्हारे इन् त्यागो को एहसास न सके
तुमने अपने सपनो को गवा दिया … ताकि हमारे सपने पूरे हो
मगर क्या करे माँ हम तो वो भी न जान सके।

माफ़ करना माँ, हम तुम्हे समझ न सके
इस कलयुग में साक्षत देवी के रूप को महसूस न कर सके
अरे हम तो चले थे दुनिया में अच्छाई ढूंढ़ने,
पर कभी तुम्हारी अच्छाई न देख सके।

तुम सही कहती हो माँ...हम नहीं कर सकते कुछ तुम्हारे बिना
तुम सही कहती हो
जितनी भी बड़ी मुश्किल हो, तुम मुस्कुराती हो... ऐसे कैसे कर लेती हो ?
सदा ऐसे ही रहना माँ, ऐसे ही साथ देना, ऐसे ही परछाई बने रहना
क्योंकी माँ... आज तुम न होते तो हम न होते
अगर तुम्हारा साथ न होता तो आज हम सफल न होते।

~श्रीलक्ष्मी
नई दिल्ली