जो लोग सोच रहे हुकूमत उनको फसा रही
वो क्या जाने वो तो उनको बचा रही
जो थूक रहे खाकी और सादी पर
वो क्या जाने वो थूक रहे अपनी किस्मत आदि पर
देश के गुनहगार है वो जो कर रहे ये कृत्य है
वो क्या जाने ये कोरोना का उनपर ही नृत्य है
फेक रहे है वे पत्थर उन लोगो पर
वो क्या जाने फेक रहे वो पत्थर अपने ही ऊपर
अब तो समझ जाओ अभी भी वक़्त है
ये वक़्त गया तो न जाने वो कौन सा वक़्त होगा
तुम भी रोओगे देश भी रोएगा
इस गलती से तू अपनो को ही खोएगा
सम्भल जा ये देश तुझसे कर रहा अनुरोध है
कर लेना फिर करना तुझे जितना विरोध है
- Saurabh Gupta
देश की आवाज
Saurabh Gupta
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 04/04/2020
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