बेटी
मै बस एक बेटी चाहती हूं।
एक ही चाहती हूं।
एक चिंगारी चाहती हूं।
मुझे पता है,आग वो लगा देगी।
इंसानियत की जंग झिड़का देगी।
हर हाल हर राज की सिपाही चाहती हूं।
बस एक बेटी चाहती हूं।

शर्मोहया हुस्न की नुमाईशोंके परे चाहती हूं।
जहन का वो करे इस्तेमाल
जज्बातों का रखे खयाल
बस दौड़ती ना रहे बारात
खुद की सही पहचान चाहती हूं। बस एक बेटी चाहती हूं।

जमीं कहेगा, धारा कहेगा
जमाना उसे प्यारा कहेगा
माता भी कहेगा
अपने अंदर पनपती है जिंदगी
बस कुदरत की वो पहचाने गती
बस इतना ही चाहती हूं। बस एक बेटी चाहती हूं।

जमाने के मसले सुलझ रहे हैं उसके बिना
उलझनें बढ़ रही है हक का कोता सीना।
किसको परवाह जल रहा है थाल है सदीयोंका रोना।
हंसी का कारवां बस वो हो न हुस्न का जलवा
सारे कारोबार की हिस्सेदारी चाहती हूं।बस एक बेटी चाहती हूं

हर युग का बोझ क्यो उसको ही है ढोना
अपनी चाल चले वो अपना ही पहिया।
आदर्शों मे दबी रहे कब तक सिसकियां
हंसी की नस्ल इंसान चाहती हूं। बस एक बेटी चाहती हूं

पढ ली उसने सारी किताबें, दौलत की पायल कब तक खनके।
जमाना करे स्वयंवर की बातें
बस अपनी मुहब्बत वो पहचान पाये।
कौनसी आग लगानी है
कौनसा इंतकाम।
क्या है इंकलाब ये जंग नही दोस्तो, बस खुदकी पहचान चाहती हूं। बस एक बेटी चाहती हूं।
@ सरला