कुछ लफ्ज़ तुम उधार देदो होंठो को गिरवी रख लेंगे हम।
आँखों का कर्जदार बना दो आँसुओं को कम कर देंगे हम।
साँसे कुछ धुँए सी उड़ती जा ही है हवा में चारो और तेरी तरफ
ए धड़कन बेवजह धड़कना बंद कर,उड़ना बंद कर देंगे हम।
सुनाई क्यू नहीं देती कानो को एक छोटी सी आहट
कसूर कानों का नहीं तो आहट तेज कर लेंगे हम।
अब सिर्फ इंतजार है हाथों की हाथों से छुअन का
पल भर ही सही फिर तो सदियों वक्त काट लेंगे हम।
रख लेंगे हम
Rakhi Bisht
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 05/27/2019
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