जब मैं लूँ अपने आपको सँवार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार

सोलह श्रृंगारों से महकेगें अंग
काजल से काले हैं गेसुओं के रंग
कोई पुष्प गूंथना, लूँ मैं सँवार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार

उठती हैं लहरें नशे में जैसे चूर
बहेंगें हम वैसे और निकलेगें दूर
जाने न दूंगी, लूँगी रोक, अधरों के मंझधार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार

मैं बंशी क्या जानू गीतों के बोल
लगाके मुझे होंठों से बना दो अनमोल
प्रेम–धुन बजाके दो जीवन सँवार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार

बाती हूँ मैं तुम दीप की तरह
मोती हूँ मैं तुम सीप की तरह
जैसे सरिता होती, सागर से दो—चार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार

अर्चना हूँ मैं तुम सुमन की तरह
डाली हूँ मैं तुम पवन की तरह
प्रेम–सुधा की चलाके बयार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार

सुगंध हूँ मैं चन्दन हो तुम
लाज हूँ मैं बंधन हो तुम
ले चलो मुझे मर्यादाओं के पार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार

आस हूँ मैं तुम विश्वास की तरह
जीवन में तुम हो श्वांस की तरह
ह्रदय से लगालो और करो अंगीकार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार

सुरेखा सी मैं तुम वृत्त हो अपार
खींचकर मुझे कर दो, स्वप्न सब साकार
दूर ले चलो मुझे नक्षत्रों के पार
एक बार लेना पिया आँख भर निहार