याद आ गई वह गर्मी की छुट्टियां
बच्चों का घर में आना जाना था
कट्टी बट्टी का फसाना था
पसीने से लथपथ बच्चों का आना
वह गंदे कपड़ों को साबुन से धोना
हर शाम बच्चों के आवाज से बिल्डिंग का गूंज जाना
चीटिंग चीटिंग का आवाज अक्सर सुन जाना
खाना खाकर बच्चों का फिर भाग जाना
रात को बैडमिंटन खेल आराम से आना......
याद आता है वह शाम को मार्केट जाना
रस्ते में दोस्तों के साथ थोड़ा बतियाना
थोड़ा सुख दुख बांट लेना
और इसी बहाने थोड़ा चल लेना
भारतीय संस्कृति अजब है
जहां की एकता गजब है
यहां सुख दुख में आना जाना रहता है
कोई त्यौहार अकेले नहीं मनाया जाता है
शादी हो या गणपति, रिश्तेदारों और दोस्तों को बुलाया जाता है
सबको मिठाई और प्रसाद खिलाया जाता है
अकेले खुश रहना हमारी फितरत में नहीं
यहां हर खुशी मिल बांट बढ़ाया जाता है
शीघ्र ही पुराने दिन वापस आएंगे
हम दरवाजा खोल पड़ोसियों से गप्पे लड़ाएंगे
दोस्तों को घर बुलाएंगे
हंसी मजाक के सिलसिले दोहराएंगे
सब त्यौहार एक साथ मनाएंगे।
पुराने दिन शीघ्र ही लौट आएंगे।
पुराने दिन शीघ्र ही लौट आएंगे।
याद आ गई गर्मी की छुट्टियां
Gopal Krishnan
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 05/29/2020
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