"मजबूर तेरी जिंदगी"
कहने को तो आजाद पंछी
पर दिल की मर्ज़ी कैद हैं।
चाहत तेरी जल रही ,
और जिंदगी बेचैन हैं।
घर की चार दीवारियो में
कैद है तेरे जिस्म जान,
घुटन की आग में हैं जलती
तेरी सुबह शाम।
अरमान है तेरे भी
आसमान मे उड़ने की
काश कोई तेरे सपनो को भी
इस जहां में उड़ने देता।
दर बदर भटक रही,
बिरान तेरी जिंदगी
ख़्वाब तेरे जहाँ के
दीवार से टकरा रही।
सारा जहां पल रहा
तेरी ममता के छाओं में
तुम्हारी जिंदगी की
कद्र नही किसी गांव में
ममता जहाँ लुटा रही हो
समझकर फ़र्ज़ तू अपना
बेदर्द जमाना नीलम कर रहा
तेरे दिल का सपना।
कैद करना तेरी जिंदगी
दुनिया की दशतुर हैं
आशाओ के शैलाब में जीने को
तेरी जिंदगी मजबूर हैं।
दिव्य भूषण
मजबूर तेरी जिंदगी
Divy Bhushan
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 09/07/2019
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