आप कुछ और दिन ठहर जाते
आज आए अभी तो बैठे हैं
आपने पहलू भी नहीं बदले
सोचिए न कहीं भी जाने की
कि तबीयत संभल तो ले पहले
ज़िंदगी भर कड़ी मशक़्क़त की
आप ख़ुद को बहुत थकाए हैं
आपकी हम सभी के जीवन में
अभी कितनी ही भूमिकाएं हैं
आपका प्यार न समझ पाए
आपसे ठीक से मिले भी नहीं
काश हम और साथ रह पाते
है यह अफ़सोस भी कहीं न कहीं
आप हैं वरना सब बिखर जाते
किसको मालूम हम किधर जाते
मेरी आँखों में जो बक़ाया हैं
आप वो ख़्वाब पूरे कर जाते
आप कुछ और दिन ठहर जाते
कुछ और दिन
C K Rawat
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 08/02/2019
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