आ रहे हैं कुछ तो अब अल्फ़ाज़ कम
और कुछ थक भी चली है अब क़लम
हम यहाँ बैठे हुए हैं मुन्तज़िर
आएंगे वो, है मगर उम्मीद कम
चाहे हम जाएं किसी भी रास्ते
आपकी जानिब हैं मुड़ जाते क़दम
हम को ले आया यहाँ जिनका भरम
देखिए फ़रमाएं वो कब तक करम
देखने को और अब क्या रह गया
ज़िंदगी चल हो गया क़िस्सा ख़तम
अल्फ़ाज़
C K Rawat
(1)
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