ऐसे मना के वो हमें ले जाएँगे कहाँ
बाग़ों के नाम पर हमें टहलाएँगे कहाँ
दरिया हैं कहीं पर तो कहीं सूखी ज़मीनें
बादल ख़ुदा की नेमतें बरसाएँगे कहाँ
हम आज गुलिस्तान में कल बियाबान में
मिलने तो वो आएँगे मगर आएँगे कहाँ
इन छोटे परिन्दों का बड़ा वक़्त आएगा
कि अभी उगे हैं पर, अभी उड़ पाएँगे कहाँ
वो जानते नहीं हैं गर तो जान जाएँगे
और जानेंगे नहीं तो फिर जाएँगे कहाँ
ये अर्श वाले खींच कर ले जाएँगे हमें
और उसके बाद जाने फिर पहुँचाएँगे कहाँ
कहाँ...
C K Rawat
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