बड़े तो हुए पर यह कैसी बड़ाई
कि तन से शिकायत है मन से लड़ाई
बड़ा ख़ुश था बचपन बड़ी मस्तियाँ थीं
कभी थी शरारत कभी शोख़ियाँ थीं
तभी वक़्त ने आके हमको झिंझोड़ा
तभी उम्र ने टाँग अपनी अड़ाई
बड़े तो हुए पर यह कैसी बड़ाई ...
हवाएँ भी थीं तेज़ धागे भी नाज़ुक
बड़ा मौसमों का था बदला हुआ रुख़
हमें याद है गर्मियों में छतों से
पतंग हमने कैसे थी दिन भर उड़ाई
बड़े तो हुए पर यह कैसी बड़ाई ...
बहुत मुद्दतों से थे साथी अंधेरे
लगे थे निगाहों पे पहरे ही पहरे
जहाँ से ज़रा रोशनी आ रही थी
नज़र हमने बस उस ही जानिब गड़ाई
बड़े तो हुए पर यह कैसी बड़ाई ...
सोचा था हम जाने क्या क्या करेंगे
जवाँ हो के कोई धमाका करेंगे
मगर ज़िंदगी भर से बैठे हुए हैं
न करवट ही बदली न ली अंगड़ाई
बड़े तो हुए पर यह कैसी बड़ाई ...
बड़े तो हुए...
C K Rawat
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Surya prakash rawat: Bhai bahut sunder kavita hy.... Apki sabhi kavita my 28 block ki Jhalak zaroor aati hy... Jo bahut achcha lagata hy
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