सालो का इंतज़ार
एक पल बनके खड़ा था
चाह तो थी कुछ और
लेकिन समय विपरीत ही चल पड़ा था ।।

पल की नजदीकी
क्षणिक और थी
समय का चक्र भी मानो
स्थल सा पड़ा था ।।

आते ही उसके
मैं समझ से बाहर खड़ा था
मानो किसी बंजर जमीन को
पानी का स्पर्श मिला था ।।

चाहता तो था उसे रोकना
पर इस भागदौड़ भरी जिंदगी में
खुद को साबित करना
अभी बाकी बचा था ।।