अब सवेरे-सवेरे
अलार्म घड़ी नहीं उठाती
किताबों और पेंसिलों को
कोई हड़बड़ाहट
नहीं सहलाती
हम जो
मशीनों से रहने लगे थे
शायद ,हमें सिखाने
जीवन का पाठ
ईश्वर ने ही
रोक दी है
समय की गति ||