क्यों पीछे रुकना,
हमें है चलते रहना।
इस देश के वरदान है हैम,
कभी मत समझना खुद को कम।
जितना आगे जाना था,
जितना काम करना था,
उस से भी आगे जाएंगे।
और ज्यादा काम करेंगे।
वक़्त के पाबंधी को तोड़ कर,
हद के उस पार जाएंगे।
इसी मिटटी का तो बने हम,
तो फिर मिटटी में मिलने से क्यों डरे हैम।
चलो हम जंग लड़ते हैं,
अन्याय के जड़ का नाम और निशान मिटाते है।
क्यूं कि रागों में दौड़ता है भारतीय खून,
थोडासा भी कम नहीं है जोश और जूनून।
हाथ में है हमारा तिरंगा,
जिससे आज तक कोई नहीं लेपाया है पंगा।
चलो देशवासियों, आगे बढो,
सहते आये अन्याय से अपने रिश्ते तोड़ो।
जितना जोर हो सके आवाज़ उठाओ,
पापियों को ज़रा एहसास दिलाओ।
की उनका कार्यकाल खतम हुआ,
सचाई सबको पता चलागया।
अच्छा होगा वो लोग सुधर जाए,
या फिर इस जहाँ से निकल जाए।
चलो दिखादो अपना पूरा दम,
जिससे कोई नही समझेगा खुद को कम।
चलो हम सब आज से ये शपथ लेते हैं की-
" जब तक हम एक भारतीय के नाते जिएंगे,
तब तक हम पापियों पर भारी पड़ेंगे"।
अब जुर्म नहीं चलेगा
Satyaprajna Das
(C) All Rights Reserved. Poem Submitted on 06/04/2020
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Gopal Krishnan: वह क्या लिखा है। दिल खुश कर दिया कविता ने।
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