मैं कौन हूं?
मैं कहां हूं?
कहां से आया हूं?
कहां जाना है?
इस सवाल का जवाब,
मुझे आज पाना है।

कोई कहे तु शरीर,
कुछ पल रहना है,
फिर चले जाना है।

कोई कहे तु आत्मा,
शरीर से छुटकारा पाना है,
मोक्ष का मार्ग अपनाना है।

जहां भर लोग मिले,
सब मतलबी निकले,
मरे तो भी बोले,
इनके बिना, अब हम कैसे जिए?।

क्या कोई जहां है,
जहां अपना है?
जहां प्यार सच्चा है?
जिंदगी सच्ची है?
जहां एक अनजान चीज के पीछे,
भटकना नहीं पड़ता।
जहां जिंदगी साफ दिखती है,
जहां कुछ सोचे कुछ होता है ,
ऐसा नहीं होता है।

हम दूसरों की देखी,
दूसरों से सीखी जिंदगी जीते हैं,
दिमाग लगाने पर भी समझ नहीं पाते हैं,
बस दौड़ते चले जाते हैं,
फिर एक दिन मौत आ जाता है।
सब कुछ खत्म हो जाता है।

क्या भगवान हैं?
क्या आत्मा है?
यह दुनिया किसने बनाई?
अगर भगवान है, तो दिखते क्यों नहीं?
कहते हैं कर्ताधर्ता भगवान हैं।
फिर दिमाग क्यों दिया है?

जितना सोचते हैं, उलझते जाते हैं,
अपने सवालों का जवाब कभी नहीं पाते हैं।
शायद इन सवालों का जवाब है ही नहीं।

यह दुनिया बड़ी है रहस्यमई।
यह दुनिया बड़ी है रहस्यमई।