मैं मां हूं....
मैं बहन हूं......
मैं बेटी हूं
मैं बहू हूं
मैं प्रेमिका हूं
मैं पत्नी हूं
मैं दोस्त हूं
मैं इज्जत हूं...
जब तक मैं ये हूं...
तब तक मैं देवी हूं...
जब बोला मैंने.. मैं नारी हूं..
सांस लेती हूं
हंसती हूं, रोती हूं
तब मैं...खो देती हूं..
अपना वो सम्मान..
जो तुम मुझे देते हो...
क्यों...

क्योंकि मैं एक औरत हूं...
जिसे हक नहीं अकेले रहने का
जिसे हक नहीं रात में घूमने का
जिसे हक नहीं प्रेम करने का
जिसे हक नहीं कुछ कहने का..
क्यों...
तुम लेते हो मेरे फैसले..
किसने तुम्हें ये हक दिया..
मुझे किसी प्रमाण की जरूरत नहीं
क्योंकि मैं... मैं हूं..
जो हंस सकती है
उड़ सकती है...
आसमां छू सकती है..
मुझे गर्व है औरत होने का..
जिसे कुदरत ने बनाया
उसे तुम क्या बनाओगे..
तुम तुम हो.. मैं मैं हूं..
जब मैं तुम नहीं तो तुम मैं कैसे..
जब मैं-तुम... हम बनेंगे
तब सपने होंगे पूरे...
हां ... मैं औरत हूं...
और इसमें कोई शर्म नहीं
क्योंकि बिना मेरे तुम्हारा कोई अस्तित्व नहीं ..
मैं वजूद हूं
मैं नाज हूं
मैं साज हूं
मैं तुम्हारी पहचान हूं...
हां... मैं औरत हूं...