मंज़िल तेरी तलाश में हम दर-ब-दर गए
कि रास्ते को पाने में बरसों गुज़र गए
तनहा सफ़र और दूर तक बिखरी यह ज़िंदगी
कितने मेरी निगाह से मंज़र गुज़र गए
घर से चला तो ख़्वाब कई साथ साथ थे
वो मेरे हमसफ़र न अब जाने किधर गए
परस्तिशें नहीं चलीं ना गर्दिशें टलीं
जगराते कीर्तन तमाम बेअसर गए
मंज़िल
C K Rawat
(1)
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