ग़म भरी ये रात ढल जाने को है
धूप सुबह की निकल जाने को है

फ़ासला अब ख़त्म हो जाने को है
मील का पत्थर पिघल जाने को है

अन्दरूनी आग है ये बेशुबहा
दिल पतंगा जिसमें जल जाने को है

आजकल जैसी हवाएं चल रहीं
पूरा ही मंज़र बदल जाने को है

क़ौम की क़िस्मत संवर जाने को है
एक नया जुमला उछल जाने को है

तीर कोई उल्टा चल जाने को है
क़ातिलों का दम निकल जाने को है