बात है कुछ साल पुरानी, जब यूँ शुरु हुई ये कहानी,
वो कॉलेज की बैच पुरानी, अनजाने में हुई नादानी,
की यारों ने बड़ी शैतानी, मुझसे सब बातें मनवानी,
मिली मुझे फिर एक सयानी, हर पल करे अपनी मनमानी,
हमें भी कहा सुनने आनी, यारों संग ही लिखी कहानी,
फिर वक़्त कुछ ऐसा आया, अपनों को मैं ही ना भाया,
शुरु हुई सयानी कहानी, दिल की हलचल हमने जानी,
यारों को जब बात बताई, हँसकर सबने मज़ाक उड़ायी,
उसको छुपके देख रहा था, उसकी बातें सोच रहा था,
मन मैं मेरे कोई ना दूजा, मन्दिर-मस्जिद गुरुद्वार भी पूजा,
जब कुछ हमें समझ नही आयी, हमने भी जल्दी की भाई,
यारों ने भी बहुत सिखायी, बिन विश्वास बात बन न पायी,
फिर विश्वास की किरण जगाई, दोस्ती तक बात पहुंचायी,
गलती फिर वही हमने दोहराई, कर दी अपनी फिर बढ़ाई,
यारों की महफिल भी हमने, उसके आगे यूँ ठुकराई,
हो गयी थी मुझसे गलती, सयानी आगे कुछ ना चलती,
अपनों से फिर माफी मांगी, जिन्दगी फिर लौटने लागी,
कुछ एहसास वहां भी जागे, पर अब यार-दोस्त सब भावे,
मन में उठी फिर चंचलता, गलती मैं फिर करता फिरता,
अबकी बार रहा असमंजस, जवाब में भी रहा कश्मकश,
यारों संग फिर जारी मस्ती, ज़िंदगी कृषि कॉलेज में बस्ती,
आखिरी पल जाना हमने, पहली मोहब्बत थी बड़ी हस्थी,
फिर इक बार बात बड़ाई, तब भी उसको समझ ना आयी,
यारों को बहुत सिखाये, पहली मोहब्बत की सर झुकाये।