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सपनों के महल

Sanjay Gupta

शायद यह वहम है तुम्हारा
कि सपनों के महल बना करतें हैं।
लेकिन हाँ ,
रेत के घरौंदों का आकार होता है।
बेबुनियाद सी छलकती लहरों से मन में ,
हज़ारों ख़्याल हैं लरजते उफनते
कुछ चूमते गगन को,
कुछ राज से भी गहरे
निकलतें हैं कुछ दबे अरमानों की कब़्र से।
शायद यह वहम है तुम्हारा
कि हर ख़्याल को रंग दे सकते हो,
लेकिन हाँ ,
कुछ एक ख़्यालों का सपना साकार होता है
शायद यह वहम है तुम्हारा
कि सपनों के महल बना करतें हैं।
लेकिन हाँ ,
रेत के घरौंदों का आकार होता है।

(C) Sanjay Gupta
07/11/2019


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